Thursday, June 14, 2018

राष्‍ट्रीय आय


राष्‍ट्रीय आय

भारत की राष्‍ट्रीय आय और प्रति व्‍यक्ति आय की गणना का प्रथम प्रयास दादा भाई नौरोजी ने वर्ष 1867-68 में किया था। नौरोजी के आकलन के अनुसार वर्ष 1868 में प्रति व्‍यक्ति आय 20 रुपये थी।
एफ सिर्रास ने वर्ष 1911 में प्रति व्‍यक्ति आय 49 रुपये बताया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व इस दिशा में प्रथम आधिकारिक प्रयास वाणिज्‍य मंत्रालय (आर्थिक सलाहकार कार्यालय) द्वारा किया गया। वर्ष 1949 में भारत सरकार द्वारा नियुक्‍त्त राष्‍ट्रीय आय समिति का अध्यक्ष पी. सी. महालनोबिस थे। डॉ. आर. गाडगिल तथा वी.के.आर.वी. राव इस समिति के सदस्‍य थे

·         किसी भी अर्थव्‍यवस्‍था में एक वर्ष के दौरान उत्पादित अंतिम वस्‍तुओं (FINAL GOODS)  तथा सेवाओं के मूल्‍य राष्‍ट्रीय आय कहलाता है।
·         भारत में राष्‍ट्रीय आय के आँकडे वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च पर आधारित है। भारत में सांख्यिकी विभाग के अंतर्गत केन्‍द्रीय सांख्यिकी संगठन (स्‍थापना 1951) राष्‍ट्रीय आय के आकलन एवं प्रकाशन के लिए उत्तरदायी है। इस कार्य में राष्‍ट्रीय प्रदर्शन सर्वेक्षण संगठन केन्‍द्रीय सांख्यिकी संगठन की मदद करता है

नोट: साइमन कुजनेट्स को राष्‍ट्रीय आय लेखांकन का जन्मदाता माना जाता है जिन्‍हें इसके लिए नोबेल पुरस्‍कार मिला।

साइमन कुजनेट्स

राष्‍ट्रीय आय की लागत : किसी अर्थ व्‍यवस्‍था की आय यानी इसकी कुल उत्पादित वस्‍तुओं और सेवाओं के मूल्‍य की गणना या तो साधन लागत (Factor Cost-FC) पर की जा सकती है या फिर बाजार लागत (Market Price -MP) पर।

साधन लागत : यह मूलतः: निवेश की गर्इ् लागत होती है जिसे उत्‍पादक प्रक्रिया के दौरान लगाता है। जैसे पूंजी की लागत, ऋणों पर ब्याज, कच्चा माल, श्रम, किराया, बिजली आदि। अर्थात किसी वस्‍तु या सेवा के उत्‍पादन में उपभोग या प्रयुक्त उत्‍पादक कारकों के सम्पूर्ण मूल्‍य को साधन लागत कहा जाता है।

नोट : साधन लागत में सरकार को भुगतान किये गये कर को शामिल नहीं किया जाता है, क्‍योंकि यह प्रत्‍यक्ष तौर पर उत्‍पादन प्रकिया में शामिल नहीं होता है परन्‍तु कोर अनुदार प्राप्‍त की जाती है तो उसे साधन लागत में शामिल किया  जाता है।

बाजार लागत : बाजार लागत वह मूल्‍य है जिसे एक उपभोक्‍ता द्वारा किसी वस्‍तु एवं सेवा को खरीदते समय किसी विक्रेता को अदा करता है। बाजार लागत वस्‍तु एवं सेवा की साधन लागत पर अप्रत्यक्ष कर (सेनवेट, केन्‍द्रीय उत्पाद कर, सीएसटी आदि) जोड़ने के बाद निकाली जाती है, यानी बाजार मूल्‍य पर पहुँचने के लिए साधन लागत में सरकार को भुगतान किये गये कर को शामिल किया जाता है जबकि सरकार द्वारा दी गई अनुदान को साधन लागत में से घटा दिया जाता है क्‍योंकि साधन लागत निर्धारण के समय ही उसकी गणना कर ली जाती है।

नोट : भारत आधिकारिक तौर पर राष्‍ट्रीय आय की गणना साधन लागत पर किया जाता था। जनवरी 2015 से केन्‍द्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा राष्‍ट्रीय आय की गणना बाजार मूल्‍य पर की जा रही है, जो वास्‍तव में बाजार लागत पर ही है। सकल मूल्‍य वर्द्धन (Gross value Added - GVA) मं उत्पाद करों को शामिल करने के बाद बाजार मूल्‍य ज्ञात होता है। उत्पाद कर केन्‍द्र एवं राज्यों के अप्रत्यक्ष कर है।  

राष्‍ट्रीय आय की गणना के लिए उत्पाद पद्धति और आय पद्धति दोनों का सहारा लिया जाता है।
1.   उत्पाद पद्धति : इसके तहत माल और सेवाओं के शुद्ध मूल्‍य वृद्धि का आकलन किया जाता है। इसका प्रयोग कृषि‍, वानिकी, पशुपालन, खनन ओर उद्योग क्षेत्र में किया जाता हे। इसको मूल्‍यवर्धित पद्धति के नाम से भी जाना जाता है।
2.   आय पद्धति : इसके अन्‍तर्गत उत्‍पादन के घटकों के लिए किये गये भुगतानों को योग किया जाता है और इसका प्रयोग परिवहन प्रशासन और व्‍यापार जैसे सेवा प्रदाता की जीडीपी का आकलन करने के लिए करते है। 

राष्‍ट्रीय आय की विभिन्‍न अवधारणा तथा उनके बीच संबंध
·         राष्‍ट्रीय आय की मूलतः: दो धारणाएं है
o    घरेलू उत्पाद (Domestic Product)
o    राष्‍ट्रीय उत्पाद (National Product)

1.   घरेलू उत्पाद : किसी देश की आर्थिक सीमा में स्थित निवासियों तथा गैर निवासियों द्वारा अर्जित आय को घरेलू उत्पाद कहते हे।

2.   राष्‍ट्रीय उत्पाद : किसी देश की आर्थिक सीमा के भीतर तथा बाहर निवासियों द्वारा अर्जित आय को राष्‍ट्रीय उत्पाद या सकल राष्‍ट्रीय उत्पाद कहते है।

नोट :
a.   जब भी किसी धारणा के साथ सकल जुडा हो तो इसका मतलब यह है कि स्थिर पूँजी उपभोग या ह्रास को घटाया नहीं जाता हे।
b.   जब हम सकल धारणा में से स्थिर पूँजी के उपभोग या ह्रास के मूल्‍य को घटा देते है तो हमें निबल या शुद्ध प्राप्‍त होता है।
c.   निवासी : निवासी की धारणा एक आर्थिक धारणा है, राज नैतिक नहीं। यह आवश्यक नहीं है कि निवासी उस देश का नागरिक भी हो। एक निवासी वह व्‍यक्ति है जिसके आर्थिक हित का केन्‍द्र बिन्‍दु वह आर्थिक या घरेलू क्षेत्र होता है जिसके संबंध में हम बात कर रहे है।   


·         राष्‍ट्रीय आय से संबंधित विभिन्‍न धारणाओं को निम्‍न रूप से व्‍यक्‍त कर सकते है।

o    सकल घरेलू उत्पाद (GDP) : किसी देश की घरेलू सीमा की भीतर स्थित निवासी उत्‍पादक तथा गैर निवासी उत्‍पादक इकाइयों द्वारा एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्‍तुओं और सेवाओं का अंतिम मौद्रिक मूल्‍य सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है। इसका आकलन राष्‍ट्रीय एवं निजी उपभोग, सकल निवेश, सरकारी एवं व्‍यापार शेष के योगफल द्वारा भी किया जाता है।
सकल घरेलू उत्पाद के उपयोग :
·         जी.डी.पी. में होने वाले वार्षिक प्रतिशत परिवर्तन ही किसी अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि दर है
·         यह परिमाणात्‍मक दृष्टिकोण है । इसके आकार से देश की आंतरिक शक्ति का पता चलता है लेकिन इससे उत्‍पादों एवं सेवाओं की गुणवता का पता नहीं चलता है।
·         अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्‍व बैंक की ओर से सदस्‍य देशों का तुलनात्मक विश्‍लेषण इसी आधार पर किया जाता है।


नोट : सी.एस.ओ. द्वारा फरवरी, 2015 में जारी निर्देशों के अनुसार अब साधन लागत पर व्‍यक्‍त जी.डी.पी. राष्‍ट्रीय आय को नहीं प्रदर्शित करेगी।

o    सकल राष्‍ट्रीय उत्पाद (GNP) : किसी अर्थव्‍यवस्‍था में GNP उस आय को कहते है जो GDP में विदेशों से होने वाली आय को जोड़कर प्राप्‍त किया जाता है।

नोट : भारत के मामले में विदेशों से होने वाली आय के बदले हानि होती है अतः: भारत का जी.एन.पी.  हमेशा जी.डी.पी. से कम होता है।
 
सकल राष्‍ट्रीय उत्पाद के उपयोग :
·         सकल राष्‍ट्रीय आय के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) दुनिया के देशों की रैकिंग तय करता है। इसके आधार पर IMF देशों को उनकी क्रय शक्ति समता या तुल्यता (Purchasing power Parity - PPP) के आधार पर रैंक तय करता है।
·         राष्‍ट्रीय आय को आंकने के लिए GNP, GDP की तुलना में विस्तृत पैमाना है क्‍योंकि यह अर्थव्‍यवस्‍था की परिमाणात्‍मक तस्वीर के साथ-साथ गुणात्मक तस्वीर भी पेश करता है।
·         यह किसी भी अर्थव्‍यवस्‍था को दुनिया की दूसरी अर्थव्‍यवस्‍था के साथ रिश्ते पर भी रोशनी डालता है। यह दूसरे देशों से लिए गये कर्ज एवं दूसरे देशों को दिये गये कर्ज से पता चलता है
·         यह बताता है कि बाहरी दुनिया किसी देश के खास उत्पाद पर कितने निर्भर है और वह उत्पाद दुनिया के देशों पर कितना निर्भर है। 


नोट : 2015-16 मं क्रय शक्ति समता पी.पी.पी. के आधार पर IMF ने भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बडी अर्थव्‍यवस्‍था बताया है। इस आधार पर चीन पहली एवं यू.एस.ए. दूसरी सबसे बडी अर्थव्‍यवस्‍था है। (भारतीय मुद्रा के विनिमय दर के आधार पर भारत दुनिया की 7वी सबसे बडी अर्थव्‍यवस्‍था है।)

o    शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP) : यह किसी भी अर्थव्‍यवस्‍था का वह जीडीपी है जिसमें एक वर्ष के दौरान होने वाली मूल्‍य कटौती यानी ह्रास को घटाकर प्राप्‍त किया जाता है। इसमें मूल्‍य कटौती की दर सरकार निर्धारित करती है।

नोट : भारत में मूल्‍य कटौती की दर का निर्धारण केन्‍द्रीय वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय करता है।

शुद्ध घरेलू उत्पाद का प्रयोग :
·         इसका इस्तेमाल घिसा वट के चलते होने वाले ह्रास को समझने के लिए किया जाता है।
·         अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में अर्थव्‍यवस्‍था की उपलब्धि को दर्शाने के लिए भी इसका उपयोग होता है।

नोट : NDP का इस्तेमाल दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍थओं की तुलना के लिए नहीं किया जाता है क्‍योंकि दुनिया की अलग-अलग अर्थव्‍यवस्‍थाऍं अपने यहां मूल्‍य कटौती की अलग-अलग दरें निर्धारित करती है।  

o    शुद्ध राष्‍ट्रीय उत्पाद (NNP) : सकल राष्‍ट्रीय उत्पाद में से मूल्‍य कटौती को घटाने के बाद जो आय बचती है उसे ही किसी अर्थव्‍यवस्‍था का शुद्ध राष्‍ट्रीय उत्पाद कहते है।
शुद्ध राष्‍ट्रीय उत्पाद के विभिन्‍न प्रयोग :
·         यह किसी भी अर्थव्‍यवस्‍था की राष्‍ट्रीय आय है।
·         यह किसी भी देश के आय को आकलित करने का सबसे अच्छा तरीका है।
·         जब NNP को देश की कुल आबादी से भाग देते है तो उससे उस देश की प्रति व्‍यक्ति आय का पता चलता है। यह प्रति व्‍यक्ति सालाना आय होती है।

भारत में राष्‍ट्रीय आय का आकलन
·         भारत में राष्‍ट्रीय आय का आकलन के संबंध में उत्‍पादन, आय तथा व्‍यय विधि का मिश्रित प्रयोग है।
·         भारत में राष्‍ट्रीय आय के अनुमान के लिए सांख्यिकीय संगठन ने सम्पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था को छ: क्षेत्रों में विभाजित किया है।
o    प्राथमिक क्षेत्र
o    द्वितीयक क्षेत्र
o    परिवहन, संचार एवं व्‍यापार
o    वित्त एवं वास्‍तविक सम्‍पदा
o    सामुदायिक एवं निजी क्षेत्र
o    विदेशी क्षेत्र
·         प्राथमिक क्षेत्र से प्राप्‍त लगभग सम्‍पूर्ण आय की गणना उत्‍पादन विधि के द्वारा होती है। कुल राष्‍ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान लगभग 30प्रतिशत है।
·         विदेशों से शुद्ध साधन आय संबंधी ऑंकडे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित तथा तैयार किये जाते है।
·         भरत में पूंजी निर्माण संबंधी ऑंकडे सी.एस.ओ; द्वारा तैयार किये जाते है, RBI द्वारा नहीं।
·         सकल राष्‍ट्रीय आय में ह्रास को घटा दे तो शुद्ध राष्‍ट्रीय आय ज्ञात होंगी जिसे हम राष्‍ट्रीय आय कहते है।

नोट : विश्‍व बैंक की ग्‍लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्‍पेक्‍ट्स रिपोर्ट 2017 के अनुसार सम्‍पूर्ण विश्‍व का 20172018 में ग्‍लोबल ग्रोथ क्रमश: 2.7प्रतिशत व 2.9प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। इसी रिपोर्ट में 20172018 के लिए भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में 7.67.8 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है।



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