अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था
अर्थशास्त्र मानव की आर्थिक
गतिविधियों का अध्ययन करता है। मानव द्वारा सम्पन्न वैसी सारी गतिविधियों
जिनमें आर्थिक लाभ या हानि का तत्व विधमान हो, आर्थिक गतिविधियों की जाती है।
अर्थव्यवस्था एक अधुरा शब्द
है अगर इसके पूर्व किसी देश या किसी क्षेत्र-विशेष का नाम जोडा जाए। वास्तव में जब हम किसी देश उसकी समस्त आर्थिक क्रियाओं के संदर्भ में परिभाषित
करते है, तो उसे अर्थव्यवस्था कहते है।
निजी क्षेत्र और बाजार के
सापेक्ष राज्य व सरकार की भूमिका के आाधार पर अर्थव्यवस्थाओं
का वर्गीकरण तीन श्रेणियों में किया जाता
है
·
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
·
राज्य अर्थव्यवस्था
·
मिश्रित अर्थव्यवस्था
Ø
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था : इस अर्थ व्यवस्था में क्या उत्पादन
करना है, कितना उत्पादन
करना है और उसे किस कीमत पर बेचना है ये सब बाजार
तय करता है, इसमें सरकार की कोई आर्थिक भूमिका नहीं
होती है।
नोट :- 1776 ई. में प्रकाशित एड्म स्मिथ की किताब '' द वेल्थ ऑफ
नेशंस '' को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का उद्गम माना जाता
है।
Ø राज्य
अर्थव्यवस्था
: इस अर्थव्यवस्था की उत्पति पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की लोकप्रियता
के विरोध स्वरूप हुआ। इसमें उत्पादन, आपूर्ति और कीमत सबका फैसला सरकार द्वारा लिया जाता है। ऐसी व्यवस्था
को केन्द्रीकृत नियोजित अर्थव्यवस्था कहते है। जो गैर-बाजारी अर्थव्यवस्था होती
है।
राज्य अर्थव्यवस्था की दो
अलग-अलग शैली नजर आती है।
·
सोवियत संघ की सामाजवादी अर्थव्यवस्था
·
1985 से पहले चीन की साम्यवादी अर्थव्यवस्था
नोट :
पहली बार राज्य अर्थव्यवस्था सिध्दांत जर्मन कार्ल मार्क्स (1818-1883)
ने दिया था, जो एक व्यवस्था के तोर पर पहली
बार 1917 की बोलशेविक क्रांति के बाद सोवियत संघ में नजर आई
और इसका आदर्श रूप चीन 1949 में सामने आया।
Ø मिश्रित अर्थव्यवस्था : इसमें कुछ
लक्षण राज्य अर्थव्यवस्था के मौजूद होते है, तो कुछ लक्षण
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के। इसे अपनाने वाले देश है भारत, मलेशिया
एवं इंडोनेशिया जैसे देश शामिल है।
नोट :
केंस के सुझाव दिया था कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था की
ओर कुछ कदम बढाना चाहिए जबकि प्रो, लांज ने कहा कि
समाजवादी अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की और कुछ कदम बढाना चाहिए।
अर्थव्यवस्था
के क्षेत्र : अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों की तीन
श्रेणियों में बांटा गया है।
·
प्राथमिक क्षेत्र : अर्थव्यवस्था का यह क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होती
है। इन गतिविधियों का संबंध भूमि, जल, वनस्पति
और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधनों से है। कृषि, पशुपालन,
मत्स्य पालन, खनन और उनसें संबद्ध गतिविधियों
को इसके अंतर्गत रखा जाता है। इसमें संलग्न श्रम की प्रकृति को रेड कॉलर जॉब के जरिये सांकेतिक किया जाता है।
·
द्वितीयक क्षेत्र : अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र जो प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को अपनी गतिविधियों
में कच्चे माल की तरह उपयोग करता है द्वितीयक क्षेत्र कहलाता है। जैसे लोहा-इस्पात
उघोग, वस्त्र उघोग, वाहन, इलेक्ट्रानिक्स आदि। वास्तव में इस क्षेत्र में विनिर्माण कार्य होता
है, इस कारण इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है। इसमें लगे
कुशल श्रमिकों को व्हृाइट कॉलर जॉब के अंतर्गत
स्थान दिया गया है, जबकि उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष
रूप से संलग्न श्रमिकों को ब्ल्यू कॉलर जॉब
के अंतर्गत रखा जाता है।
·
तृतीयक क्षेत्र : इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की सेवाओं का उत्पादन किया जाता है;
जैसे बैंकिंग, बीमा, चिकित्सा,
शिक्षा, पर्यटन आदि। इस क्षेत्र को सेवा
क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है।
आर्थिक संवृध्दि एवं आर्थिक विकास
आर्थिक संवृध्दि एवं आर्थिक विकास
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