अर्थशास्त्र : तथ्य
अर्थशास्त्र की परिभाषा
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रॉबिन्स : अर्थशास्त्र
व विज्ञान है, जोकि लक्ष्यों एवं वैकल्पिक उपयोगों
वाले सीमित साधनों के परस्पर सम्बन्धों के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है।
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मार्क्स : अर्थशास्त्र का उद्देश्य मानव समाज की प्रगति के नियम की
खोज करना है।
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बेनहम : अर्थशास्त्र उन तत्वों का अध्ययन है जो रोजगार और जीवन-स्तर
को प्रभावित करते है।
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प्रो. फ्रैडमैन : अर्थशास्त्र कभी वास्तविक विज्ञान होता है और कभी आदर्श
विज्ञान।
महत्वपूर्ण सिद्धांत
1.
ऐंगल का सिद्धांत : इस सिद्धांत
के अनुसार एक परिवार की आय बढनें पर उसका खाने-पीने की वस्तुओं पर खर्च का प्रतिशत
कम हो जाता है।
2.
ग्रेशम का नियम : यदि किसी देश में घटिया और बढिया
दो प्रकार की मुद्राऍं एक साथ चलन में हो
तो घटिया मुद्राऍं बढिया मुद्राओं को चलन से बाहर कर देती है।
3.
उत्पत्ति हृास का नियम : यदि किसी वस्तु के उत्पादन में किसी एक परिर्वनशील साधन
की मात्रा में वृद्धि की जाए तथा अन्य साधनों को स्थिर रखा जाए, तो एक निश्चित बिन्दु के पश्चात परिवर्तित
साधन की अतिरिक्त मात्राओं से प्राप्त सीामान्त उत्पादन घटता चला जाता है। इस
प्रवृत्ति को अर्थशास्त्र में उत्पत्ति हृास नियम का हृासमान प्रतिफल का
सिद्धांत कहते है।
4.
कीन्स का रोजगार सिद्धांत : इन्होंने 1936 में प्रकाशित अपनी पुस्तक जेनरल थ्योरी ऑफ इम्प्लायमेंट इन्टरेस्ट
एण्ड मनी की प्रस्तावना में 'से' के
बाजार नियम पर घातक प्रहार किया और प्रतिष्ठीत विचारधारा को अस्वीकृत करते हुये
रोजगार का एक क्रमबद्ध तथ व्यस्थित सिद्धांत प्रस्तुत किया। कीन्स के अनुसार
अर्थव्यवस्था में रोजगार का स्तर कुल उत्पादन मात्रा पर निर्भर करता है। कुल
उत्पादन मात्रा प्रभावपूर्ण मांग की मात्रा पर निर्भर करती है। अर्थात रोजगार की
मात्रा प्रभापूर्ण मांग पर निर्भर करती है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रभावपूर्ण
मांग या असमर्थ मांग में कमी से बेरोजगारी उत्पन्न होती है।
5.
नकदी लेन-देन सिद्धांत : इसका प्रतिपादन फिशर ने किया था। इस सिद्धांत के अनुसार
मुद्रा का परिमाण ही कीमत स्तर अथवा मुद्रा के मुल्य का मुख्य निर्धारक है।
फिशर के अनुसार, यदि अन्य चीजें
स्थिर रहें, तो ज्यो-ज्यों मुद्रा-संचालन की मात्रा बढती
है त्यों-त्यों कीमत स्तर भी प्रत्यक्ष अनुपात में बढता है और मुद्रा का मूल्य
भी घटता है और विलोमश: भी। यदि मुद्रा की मात्रा दूगुनी कर दी जाये तो कीमत स्तर
भी दूगुना हो जायेगा और मुद्रा का मूल्य आधा हो जायेगा और ठीक इसके विपरीत यदि
मुद्रा की मात्रा घटकर आधी हो जाये तो कीमत स्तर गिरकर आधा रह जायेगा और मुद्रा
का मूल्य दूगूना हो जायेगा।
6.
'से' का बाजार नियम: पूर्ति स्वयं अपनी मांग उत्पन्न करती है। यह नियम वस्तु
विनियम और मुद्रा विनियम दोनों पर लागू होते हैं। इसके अनुसार अर्थव्यवस्था में
सामान्य अत्युत्पादन के फलस्वरूप सामान्य बेरोजगारी उत्पन्न होती है।
नोट : अर्थव्यवस्था में वह मांग समर्थ मांग होती है जहॉं
अर्थव्यवस्था में रोजगार स्तर (एन) उत्पादन स्तर (ओ) तथा आय स्तर (वाय)
तीनों बराबर हो।
कुछ प्रमुख कथन
अर्थशास्त्र चुनाव का
विज्ञान है।
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रॉबिन्स
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अर्थशास्त्र वास्तविक
विज्ञान है।
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रॉबिन्स
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अर्थशास्त्र आदर्श विज्ञान
है।
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मार्शल
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अर्थशास्त्री का कार्य
विश्लेषण करना है,
निन्दा करना नहीं।
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रॉबिन्स
|
आवश्यकता विहीनता का
लक्ष्य सुख प्रदान करता है।
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जे.के. मेहता
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उत्पादन फलन
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उत्पादन
के साधनों तथा उत्पादन की मात्रा में सम्बन्ध को उत्पादन फलन कहते है। यह साधनों
तथा उत्पाद के बीच तकनीकी सम्बन्ध को प्रकट करता है।
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जब कूल
उत्पादन अधिकतम होता है तो सीमान्त उत्पाद शून्य होता है।
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सीमान्त उत्पाद
शून्य और ऋणात्मक हो सकता है लेकिन औसतन उत्पाद न तो कभी शून्य हो सकता है और न
ही ऋणात्मक।
·
कॉब-डगलस
उत्पादन फलन : इस उत्पादन फलन को कॉब ओर डगलस नामक दो अर्थशास्त्रियों ने
प्रतिपादित किया था इसलिए यह फलन उनके नाम से जाना जाता है। यह फलन रेखीय समरूप
फलन का एक रूप है।
अर्थशास्त्र :
प्रमुख पुस्तक
|
पुस्तक
|
लेखक
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1
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वेल्थ ऑफ नेशन्स
|
एडम स्मिथ
|
2
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फाउंडेशन ऑफ इकोनोमिक
एनालिसिस
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सेम्युल्सन
|
3
|
प्रिंसिपल्स ऑफ इकोनोमिक्स
|
मार्शल
|
4
|
नेचन एण्ड सिग्नीफिकेन्स
ऑफ इकोनोमिक साइंस
|
रॉबिन्स
|
5
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दास कैपिटल
|
कार्ल मार्क्स
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6
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द थ्योरी ऑफ इम्प्लायमेंन्ट
इन्टरेस्ट एण्ड मनी
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जे.एम.केन्ज
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7
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जेनरल थ्योरी ऑफ इम्प्लायमेंट
इन्टरेस्ट एण्ड मनी
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कीन्स
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8
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हाऊ दू पे फॉर वार
|
कीन्स
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मांग
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प्रभावपूर्ण
इच्छा ही मांग है।
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यदि अन्य
बातें सामान्य रहें तो मूल्य बढने से मांग घटती है और मूल्य घटने से मांग बढती
है।
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गिफिन वस्तओं
में मांग का नियम लागू नहीं होता है।
गिफिन वस्तुऍं : गिफिन वस्तुऍं निम्न कोटि की वस्तुऍं होती है।
मूल्य मं वृद्धि होने पर गिफिन वस्तुओं की मांग बढ जाती है तथा मूल्य में कमी
होने पर इसकी मांग कम हो जाती है। इस विरोधाभास को गिफिन विरोधाभास की संज्ञा
प्रदान की गयी।
मुद्रा के मूल्य
में परिवर्तन
मुद्रा मं होने वाले
परिवर्तनों के मुख्य चार रूप होते है --
1. मुद्रास्फीति
2. अवस्फीति अथवा
मुद्रा-संकूचन
3. मुद्रा-संस्फीति
4. मुद्रा-अवस्फीति
·
मुद्रास्फीति : मुद्रास्फीति व स्थिति है जिसमें कीमत स्तर में वृद्धि होती
है तथा मुद्रा का मूल्य गिरता है। यानी मुद्रास्फीति व अवस्था है जब वस्तुओं
की उपलब्ध मात्रा की तुलना में मुद्रा तथा साख की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है
और परिणामस्वरूप मूल्य स्तर में निरन्तर व महत्वपूर्ण वृद्धि होती है।
·
मुद्रास्फीति का प्रभाव :
o उत्पादक वर्ग (कृषक, उद्योगपति, व्यापारी) को लाभ होता है।
o ऋणी को लाभ तथा ऋणदाता को हानि होती है।
o निश्चित आय वाले वर्ग को हानि होती है जबकि परिवर्तित आय वाले
वर्ग को लाभ होता है।
o समाज में आर्थिक विषमताऍं बढ जाती है धनी वर्ग और धनी तथा
निर्धन वर्ग और निर्धन होता चला जाता है।
o व्यापार संतुलन विपक्ष में हो जाता है क्योंकि आयात में
वृद्धि तथा निर्यात में कमी हो जाती है।
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मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के
उपाय
o
राजकोषीय उपाय
·
संतुलित
बजट बनाना
·
सार्वजनिक
व्यय विशेषकर अनुत्पादक व्यय पर नियंत्रण रखना
·
प्रगतिशील
करारोपण
·
सार्वजनिक
ऋण मं वृद्धि करना
·
बचत को
प्रोत्साहित करना
·
उत्पादन
में वृद्धि करना
o
मौद्रिक उपाय
·
मुद्रा
निर्गमन के नियमों का कठोर बनाना
·
मुद्रा की
मात्रा को संकुचित करना
·
कठोर सााख
नीति अपनाना।
·
मुद्रा-संकुचन अथवा अवस्फीति : यह मुद्रास्फीति की विपरीत अवस्था है इसमें
मुद्रा का मूल्य बढता है और वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य घटता है। प्रो. पीगू
के अनुसार मुद्रा-संकुचन निम्न परिस्थितियों के दो प्रमुख कारण है-
o उत्पादन में वृद्धि मुद्रा की मात्रा से अधिक होती है।
o मूल्यों में गिरावट आती रहती है।
·
मुद्रा-संकुचन को रोकने का उपाय
o
मौद्रिक उपय
·
मुद्रा का
अधिक निर्गमन
·
साख
मुद्रा का विस्तार
o
राजकोषीय उपाय
·
सार्वजनिक
व्यय में वृद्धि
·
करारोपण
में कमी
·
ऋणों का
भुगतान
·
आर्थिक
सहायता एवं अनुदान में वृद्धि
o
अन्य उपाय
·
निर्यात
में वृद्धि तथा आयात में कमी
·
पूर्ति पर नियंत्रण।
·
मुद्रा
अवस्फीति अर्थव्यवस्था मं आर्थिक क्रियाओं को समाप्त करके बेरोजगारी बढाती है, जिसमें सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था निष्क्रिय
एवं निर्जीव होकर मंदी के दौर में फंस जाती है।
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मुद्रा संस्फीति : वह प्रक्रिया है जिसमें जान-बुझकर मुद्रा और साख की मात्रा
में वृद्धि करके वस्तु-मूल्यों मं वृद्धि का प्रयास किया जाता है। संस्फीति
प्राय: अर्थव्यवस्था में व्याप्त मंदी से छूटकारा प्राप्त करने के लिए किया जाता
है।
नोट : मुद्रास्फीति
और संस्फीति की प्रकृति लगभग एक-सी होती है। दोनों में ही मुद्रा की मात्रा बढती
है तथा कीमतों में वृद्धि होती है, परन्तु दोनों में कुछ
महत्वपूर्ण अंतर होता है। संस्फीति जान-बूझकर नियंत्रणात्मक रूपर से बिगडी हुई
स्थिती को सुधारने के लिए अपनायी जाती है जबकि मुद्रास्फीति प्राय: अनियन्त्रित
एवं परिस्थितिजन्य होती है।
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मुद्रा अपस्फीति : मुद्रा अपस्फीति के अन्तर्गत वे सब क्रियाऍं, नीतियॉं व उपाय आते हैं, जो मुद्रास्फीति के वेग को रोकने के लिए किये जाते हैं।
·
मुद्रा अपस्फीति एवं मुदा-संकुचन में
तुलना
o मुद्रा-संकुचन या विस्फीति देश में मंदी की स्थिति उत्पन्न
करती है जबकि मुद्रा अपस्फीति कीमत स्तर को सामान्य अवस्था में लाने के लिए की
जाती है।
o मुद्रा अपस्फीति नियोजित रूपर में एक निर्धारित नीति के
अनुसार की जाती है जबकि मुद्रा-संकुचन स्वयं उत्पन्न होती है।
o मुद्रा अपस्फीति देश की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए होती
है, जबकि मुद्रा-संकुचन से देश को हानि होती है।
o मुद्रा-संकुचन एवं मुद्रा उपस्फीति दोनों ही गिरती हुई कीमतों
का सूचक है तथा दोनों की प्रकृति लगभग एक-सी होती है।
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